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वरुथिनी एकादशी का क्या है महत्व, जानिए कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Varuthini Ekadashi 2023 
 

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2023) के दिन श्रीहरि विष्‍णु की पूजा की जाती है। यह एकादशी लोक-परलोक में सौभाग्य देने वाली मानी गई है। आइए यहां जानते हैं इसका महत्व, मुहूर्त और कथा के बारे में-

 

महत्व : वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की यह एकादशी सब पापों को नष्ट करने वाली, सौभाग्य तथा अंत में मोक्ष देने वाली मानी जाती है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल मनुष्य को मिलता है वही फल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मात्र से प्राप्त हो जाता है। यदि कोई अभागिनी स्त्री इस व्रत को करें तो उसको सौभाग्य मिलता है। यह एकादशी दस हजार वर्ष (10000) वर्ष तक तप करने के बराबर फल देती है। 

 

इस व्रत का फल अन्न दान तथा  कन्या दान करने के बराबर प्राप्त होता है। इस दिन खरबूजा का दान करना सबसे अधिक फलदायी माना गया है। जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलय काल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्या दान का फल मिलता है। 

 

वरुथिनी एकादशी व्रत-पूजन के शुभ मुहूर्त- Varuthini Ekadashi Muhurat 2023 

 

वरुथिनी एकादशी रविवार, अप्रैल 16, 2023 को

 

एकादशी तिथि का प्रारंभ- 15 अप्रैल 2023, शनिवार को 08:45 पी एम से शुरू

एकादशी तिथि का समापन- 16 अप्रैल 2023 को 06:14 पी एम पर। 

 

16 अप्रैल 2023, रविवार : दिन का चौघड़िया

चर- 07.32 ए एम से 09.08 ए एम

लाभ- 09.08 ए एम से 10.45 ए एम

अमृत- 10.45 ए एम से 12.21 पी एम

शुभ- 01.58 पी एम से 03.34 पी एम

 

रात का चौघड़िया

शुभ- 06.47 पी एम से 08.11 पी एम

अमृत- 08.11 पी एम से 09.34 पी एम

चर- 09.34 पी एम से 10.57 पी एम

लाभ- 01.44 ए एम से 17 अप्रैल को 03.07 ए एम तक। 

शुभ- 04.31 ए एम से 17 अप्रैल को 05.54 ए एम तक।

 

– वरुथिनी एकादशी पारण टाइम-Varuthini Ekadashi Paran Time
 

पारण का समय- 17 अप्रैल, सोमवार को 05.54 ए एम से 08.29 ए एम

द्वादशी का समापन (पारण तिथि के दिन)- 03.46 पी एम

 

वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा-Varuthini Ekadashi Vrat Katha

 

इस एकादशी व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। 

 

कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला। राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ। 

 

उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।’ 

 

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। अत: जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गया था। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

 

इस एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग मिला था। मान्यता है कि जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी व्रत को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। अत: मनुष्यों को धर्म कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए और पाप कर्मों से दूर रहना चाहिए तथा पापों को करने से डरना चाहिए। 

पूजा विधि : Ekadashi Puja Vidhi 

 

– वरुथिनी एकादशी के पहले दिन यानी दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक और हलका भोजन करें। 

 

– एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें।

 

– तत्पश्चात श्री भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सामग्री से विधिपूर्वक पूजन करें। 

 

– घर के आसपास पीपल का वृक्ष हो तो उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर, पूजा करें और घी का दीपक जलाएं।

 

– साथ ही तुलसी का पूजन करें। 

 

– पूजन के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करते रहें।

 

– रात्रि में पुन: भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा तथा अर्चना करें। 

 

– पूरे दिन श्री विष्णु का स्मरण करें।

 

– रात में भगवान श्री विष्णु का ध्यान, कीर्तन आदि करते हुए रात्रि जागरण करें। 

 

– एकादशी व्रत के दिन अगर हो सकें तो एक ही बार फलाहार ग्रहण करें।

 

– एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी को व्रत खोलने से पूर्व पुन: श्री विष्‍णु का पूजन करके किसी योग्य ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं तथा दान-दक्षिणा दें।

 

– तत्पश्चात व्रत का पारण करें। पारण के समय शुभ मुहूर्त का अवश्य ध्यान रखें।

 

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