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Hanuman janmotsav 2023 : हनुमानजी के 9 चमत्कार, जानकर चौंक जाएंगे

Hanuman Jayanti 2023: हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सभी ओर एक साथ विद्यमान हैं। हनुमान जी के बगैर न तो श्रीराम युद्ध जीत पाते और न ही श्रीकृष्ण महाभारत का युद्ध लड़ पाते। हनुमानजी एक कल्प तक इस धरती पर रहेंगे। चारों युगों में उन्होंने अपने भक्तों को अपनी उपस्थिति से अवगत कराया है। यहां प्रस्तुत है त्रेता और द्वापर के उनके चमत्कार।

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पहला चमत्कार : एक बार की बात है, माता अंजनि हनुमानजी को कुटिया में सुलाकर कहीं बाहर चली गई थीं। थोड़ी देर में जब हनुमानजी की नींद खुली तो उन्हें तेज भूख लगने लगी। इतने में आकाश में उन्हें चमकते हुए भगवान सूर्य दिखाई दिए। हनुमानजी से समझा कि यह कोई लाल-लाल मीठा फल है। बस उसे तोड़ने के लिए हनुमानजी उसकी ओर उड़ने लगे। हनुमानजी ने सूर्य भगवान के निकट पहुंचकर उन्हें पकड़कर अपने मुंह में रख लिया। वह दिन सूर्यग्रहण का था। राहु सूर्य को ग्रसने के लिए उनके पास पहुंच गया था। उसे देखकर हनुमानजी ने सोचा कि शायद यह भी कोई काला फल है इसलिए वे उसकी ओर भी झपटे। जैसे-तैसे जान बचाकर राहु वहां से भागा।

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दूसरा चमत्कार : सबसे पहले बाली पुत्र अंगद को समुद्र लांघकर लंका जाने के लिए कहा गया लेकिन अंगद ने कहा कि मैं चला तो जाऊंगा लेकिन पुन: लौटने की मुझमें क्षमता नहीं है। मैं लौटने का वचन नहीं दे सकता। तब जामवंत के याद दिलाने पर हनुमानजी को अपनी शक्ति का भान हुआ तो वे दो छलांग में समुद्र को पार कर गए।

 

तीसरा चमत्कार : जब रावण ने अपने दरबार में हनुमानजी को बैठने के लिए स्थान नहीं दिया तो हनुमानजी ने अपनी पूंछ को बड़ा करने रावण से भी ऊंचा आसन बना लिया और वे उसी के ऊपर बैठ गए। यह देखकर सभी दरबारी दंग होकर भयभीत हो गए।

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चौथा चमत्कार : राम की महिमा सुनकर रावण क्रोधित होकर कहता है कि जिस पूंछ के बल पर यह बैठा है, उसकी इस पूंछ में आग लगा दी जाए। जब बिना पूंछ का यह बंदर अपने प्रभु के पास जाएगा तो प्रभु भी यहां आने की हिम्मत नहीं करेगा। पूंछ को जलते हुए देखकर हनुमानजी तुरंत ही बहुत छोटे रूप में हो गए। बंधन से निकलकर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े। फिर उन्होंने अपना विशालकाय रूप धारण किया और अट्टहास करते हुए रावण के महल को जलाने लगे। उनको देखकर लंकावासी भयभीत हो गए। देखते ही देखते लंका जलने लगी और लंकावासी भयाक्रांत हो गए। हनुमानजी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया। सारी लंका जलाने के बाद वे समुद्र में कूद पड़े।

 

पांचवां चमत्कार : राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाद ने शक्तिबाण का प्रयोग किया तो लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए थे। जामवंत के कहने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणाचल पर्वत की ओर गए। जब उनको बूटी की पहचान नहीं हुई, तब उन्होंने पर्वत के एक भाग को उठाया और वापस लौटने लगे। रास्ते में उनको कालनेमि राक्षस ने रोक लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगा। कालनेमि राक्षस रावण का अनुचर था। रावण के कहने पर ही कालनेमि हनुमानजी का रास्ता रोकने गया था। लेकिन रामभक्त हनुमान उसके छल को जान गए और उन्होंने तत्काल उसका वध कर दिया।

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छठा चमत्कार : अहिरावण रावण का मित्र था। अहिरावण पाताल में रहता था। रावण ने कहने पर उसने भगवान राम के युद्ध शिविर में उतरकर राम और लक्ष्मण दोनों का अपहरण कर लिया था। दोनों को वह पाताल लोक लेकर गया और वहां उसने दोनों को बंधक बनाकर रख लिया। तब हनुमानजी राम-लक्षमण को अपहरण से छुड़वाने के लिए पाताल पुरी पहुंच गए। वहां उन्होंने देखा कि उनके ही रूप जैसा कोई बालक पहरा दे रहा है। उसका नाम मकरध्वज था। मकरध्वज हनुमानजी का ही पुत्र था। अहिरावण को तभी मारा जा सकता था जबकि एक अपनी एक ही फूंक में वहां जल रहे विशालकाय दीयों को बुझा दें। ऐसे में हनुमानजी ने पंचमुखी रूप धारण किया और सभी दीये बुझा दिए। फिर हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। वे राम-लक्षमण दोनों को अपने कंधे पर बिठाकर पुन: युद्ध शिविर में लौट गए।

 

सातवां चमत्कार : भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था। श्रीकृष्ण ने गरुड़ देव को हनुमानजी को बुलाने के लिए कहां जो द्वारिका से हजारों किलोमीटर दूर गंधमादन पर्वत पर विराजमान थे। गुरुड़ ने तक्षण ही वहां पहुंचकर हनुमानजी से अपने साथ पीठ पर बैठकर चलने के लिए कहा, लेकिन हनुमानजी ने कहा कि तुम चलो मैं आता हूं। गुरुड़ देव ने कहा कि तुम वहां उतनी जल्दी नहीं पहुंच सकते जितनी जल्दी मैं पहुंच सकता हूं। हनुमानजी ने कहा कि देखते हैं, तुम चलो मैं आता हूं।

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हनुमानजी अपनी शक्ति से गरुड़जी से पहले द्वारिका के द्वार पर पहुंच जाते हैं। वहां सुदर्शन चक्र उन्हें रोककर कहता है कि सुनो वानर तुम मेरी आज्ञा के बगैर अंदर नहीं जा सकते। हनुमानजी सुदर्शन चक्र में पकड़कर अपनी कांख में दबा लेते हैं और अंदर चले जाते हैं। वहां पर एक झुले में श्रीकृष्ण और सत्यभामा झुल रहे होते हैं तो हनुमानजी श्रीकृष्ण को देखकर उनके चरण छूकर बोलते हैं प्रभु आप यहां पर अकेले इस दासी के साथ? यह सुनकर सत्यभामा सोच में पड़ जाती है। तब हनुमानजी श्रीकृष्ण से पूछते हैं- प्रभु मां सीता कहां है जो इस जगत में सबसे सुंदर और मातृतुल्य है? यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराते हैं और सत्यभामा के चेहरे की ओर देखते हैं। तभी गरुड़जी आते हैं और हनुमानजी को अपने से पहले पहुंचा हुआ देखकर चौंक जाते हैं। इस तरह हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण तीनों का घमंड तोड़ देते हैं।

आठवां चमत्कार : एक बार वनवास काल में द्रौपदी को एक सहस्रदल कमल दिखाई दिया। उसने उसे ले लिया और भीम से उसी प्रकार का एक और कमल लाने को कहा। भीम कमल लेने चल पड़े। आगे जाने पर भीम को गंधमादन पर्वत की चोटी पर एक विशाल केले का वन मिला जिसमें वे घुस गए। इसी वन में हनुमानजी रहते थे। उन्हें भीम के आने का पता लगा तो उन्होंने सोचा कि अब आगे स्वर्ग के मार्ग में जाना भीम के लिए हानिकारक होगा। वे भीम के रास्ते में लेट गए। भीमसेन ने वहां पहुंचकर हनुमान से मार्ग देने के लिए कहा तो वे बोले- ‘यहां से आगे यह पर्वत मनुष्यों के लिए अगम्य है अत: यहीं से लौट जाओ।’

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भीम ने कहा- ‘मैं मरूं या बचूं, तुम्हें क्या? तुम जरा उठकर मुझे रास्ता दे दो।’ हनुमान बोले- ‘रोग से पीड़ित होने के कारण उठ नहीं सकता, तुम मुझे लांघकर चले जाओ।’ भीम बोले- ‘परमात्मा सभी प्राणियों की देह में है, किसी को लांघकर उसका अपमान नहीं करना चाहिए।’ तब हनुमान बोले- ‘तो तुम मेरी पूंछ पकड़कर हटा दो और निकल जाओ।’

 

भीम ने हनुमान की पूंछ पकड़कर जोरों से खींची, किंतु वह नहीं हिली। भीम का मुंह लज्जा से झुक गया। उन्होंने क्षमा मांगी और परिचय पूछा। तब हनुमान ने अपना परिचय दिया और वरदान दिया कि महाभारत युद्ध के समय मैं तुम लोगों की सहायता करूंगा। वस्तुत: विनम्रता ही शक्ति को पूजनीय बनाती है इसलिए अपनी शक्ति पर अहंकार न कर उसका सत्कार्यों में उपयोग कर समाज में आदरणीय बनें।

 

नौवां चमत्कार : अर्जुन से जुड़ा है। आनंद रामायण में वर्णन है कि अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजित होने के पीछे भी कारण है। एक बार किसी रामेश्वरम तीर्थ में अर्जुन का हनुमानजी से मिलन हो जाता है। इस पहली मुलाकात में हनुमानजी से अर्जुन ने कहा- ‘अरे राम और रावण के युद्घ के समय तो आप थे?’

 

हनुमानजी- ‘हां’, तभी अर्जुन ने कहा- ‘आपके स्वामी श्रीराम तो बड़े ही श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु बनवाने की क्या आवश्यकता थी? यदि मैं वहां उपस्थित होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता।’

 

इस पर हनुमानजी ने कहा- ‘असंभव, बाणों का सेतु वहां पर कोई काम नहीं कर पाता। हमारा यदि एक भी वानर चढ़ता तो बाणों का सेतु छिन्न-भिन्न हो जाता।’

 

अर्जुन ने कहा- ‘नहीं, देखो ये सामने सरोवर है। मैं उस पर बाणों का एक सेतु बनाता हूं। आप इस पर चढ़कर सरोवर को आसानी से पार कर लेंगे।’

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हनुमानजी ने कहा- ‘असंभव।’

 

तब अर्जुन ने कहा- ‘यदि आपके चलने से सेतु टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा।’

 

हनुमानजी ने कहा- ‘मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा।’

 

तब अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार कर दिया। जब तक सेतु बनकर तैयार नहीं हुआ, तब तक तो हनुमान अपने लघु रूप में ही रहे, लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया।

 

हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में खून ही खून हो गया।

 

तभी श्रीहनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो। अग्नि प्रज्‍वलित हुई और जैसे ही हनुमान अग्नि में कूदने चले, वैसे भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और बोले ‘ठहरो!’ तभी अर्जुन और हनुमान ने उन्हें प्रणाम किया।

 

भगवान ने सारा प्रसंग जानने के बाद कहा- ‘हे हनुमान, आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था। आपकी शक्ति से आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया। यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो।’

 

यह सुनकर हनुमान को काफी कष्‍ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी। ‘मैं तो बड़ा अपराधी निकला, जो आपकी पीठ पर मैंने पैर रख दिया। मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन्?’ तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है। आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्‍छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो।

 

इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं।