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Vikram Samvat 2080 : कौन हैं इस वर्ष के राजा, क्या है इस संवत्सर का नाम, सब जानिए यहां

Hindu nav varsh 2023: हिन्दू नववर्ष का पहला माह चैत्र माह है। फाल्गुन मास समाप्त होने के बाद चैत्र माह इस नववर्ष का पहला माह रहता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 मार्च बुधवार 2023 को हिन्दू नववर्ष प्रारंभ हो रहा है। इसे विक्रम संवत या नव संवत्सर भी कहते हैं। इस बार विक्रम संवत का 2080 वर्ष प्रारंभ होगा।

 

इस संवत का राजा बुध और मंत्री शुक्र हैं:-

नवीन संवत्सर 2080 में राजा बुध होंगे, जिनके पास कृषि/खाद्य मंत्रालय भी है। गृहमंत्री शुक्र होंगे। वित्त मंत्री सूर्य होंगे। रक्षामंत्री बृहस्पति हैं। 

गुड़ी पड़वा के दिन 2 शुभ योग हैं। शुक्ल योग प्रात: 9 बजकर 18 मिनट तक इसके बाद ब्रह्म योग 9 बजकर 19 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजे तक रहेगा।

ग्रहों के अनुसार सूर्य और बुधी की युति मीन राशि में रहेगी जिसके चलते बुधादित्य योग बन रहा है। इसी राशि में गुरु और चंद्र की युति से गजकेसरी योग भी बन रहा है।

 

क्या है इस संवत्सर का नाम :

जिस तरह प्रत्येक माह के नाम नियुक्त हैं, जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन, उसी तरह प्रत्येक आने वाले वर्ष का एक नाम होता है। 12 माह के 1 काल को संवत्सर कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है। इस तरह 60 संवत्सर होते हैं। वर्तमान में विक्रम संवत् 2080 से ‘पिंगला’ नाम का संवत्सर प्रारंभ होगा। इसके पहले नल संवत्सर चल रहा था।

 

हर प्रांत में है नाम अलग अलग :
महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, कर्नाटक युगादि, आंध्रा और तेलंगाना में उगादी, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा, सिंध में चेती चंड, गोवा और केरल में संवत्सर पड़वो नाम से इसे जाना जाता है। इसे विक्रम संवत या नव संवत्सर भी कहते हैं।

कैसे बनाते हैं गुड़ी : 

इस दिन घर के द्वार को सुंदर तरीके से सजाया जाता है।

प्रवेश द्वार को आम के पत्तों का तोरण बनाकर लगाया जाता है और सुंदर फूलों से द्वार को सजाया जाता है।

इसके साथ ही रंगोली बनाई जाती है। 

गुड़ी पड़वा के अनुष्ठान सूर्योदय से पहले आरंभ हो जाता है लोग प्रातः जल्दी उठकर शरीर पर तेल लगाने के बाद स्नान करते हैं।

 

गुड़ी की सामग्री : एक डंडा, रेशमी साड़ी या चुनरी, पीले रंग का कपड़ा, फूल, फूलों की माला, कड़वे नीम के पांच पत्ते, आम के पांच पत्ते, रंगोली, प्रसाद और पूजा सामग्री।

 

विक्रम संवत 2080 क्यों है खास:

1. हिन्दू नववर्ष प्राचीनकालीन पंचांग, ऋषि संवत, सावन माह, चंद्रवर्ष, सौरवर्ष और नक्षत्र वर्ष के आधार पर निर्मित किया गया है जिसमें सूर्य और चंद्र की गतियों के साथ सभी ग्रह और नक्षत्रों की गति का विवरण मिलता है।

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2. हिन्दू कैलेंडर में वर्ष को सूर्य की गति के आधार पर 2 भागों में बांटा है- उत्तरायण और दक्षिणायन। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है।

 

3. माह को चंद्र की गति के आधार पर दो भागों में बांटा गया है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है।

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4. सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं।

 

5. तीसरा नक्षत्रमाह होता है। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। नक्षत्रमास चित्रा नक्षत्र से प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र चैत्र मास में प्रारंभ होता है।

 

6. इस कैलेंडर के माह के नाम नक्षत्रों के आधार पर निर्धारित किए गए हैं। जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन।

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7. सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।

 

8. जिस तरह माह के नाम होते हैं उसी तरह वर्ष के नाम भी हैं। 12 माह के 1 काल को संवत्सर कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है। इस तरह 60 संवत्सर होते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं।

 

9. वर्तमान में 2080 के नव संवत्सर को ‘पिंगल’ नाम से जाना जाएगा। इस संवत के राजा बुध और मंत्री शुक्र होंगे। 60 वर्ष का एक युग माना गया है। इसीलिए युगादि कहते हैं। 

 

10. इसी कैलेंडर से 12 माह और 7 दिवस बने हैं। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।

 

11. प्राचीनकाल से ही यह परंपरा है कि चैत्र माह से देश दुनिया में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती रही है, क्योंकि यह माह वसंत के आगम का माह और इस माह से ही प्रकृति फिर से नई होने लगती है। आज भी भारत में चैत्र माह में बहिखाते नए किए जाते हैं। इस माह में धरती का एक चक्र पूर्ण हो जाता है। 

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12. सूर्योदय से प्रारंभ होता है हिन्दू नववर्ष। रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।

 

13. उक्त सभी कैलेंडर पंचांग पर आधारित है। पंचांग के पांच अंग हैं- 1. तिथि, 2. नक्षत्र, 3. योग, 4. करण, 5. वार (सप्ताह के सात दिनों के नाम)। भारत में प्राचलित श्रीकृष्ण संवत, विक्रम संवत और शक संवत सभी उक्त काल गणना और पंचांग पर ही आधारित है।