Guru nanak dev jee
Guru Nanak Jayanti 2023: सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर माता तृप्ता देवी जी और पिता कालू खत्री जी के घर श्री ननकाना साहिब में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नानक जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ था। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को पड़ रही है, इसलिए 27 नवंबर को सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी जयंती मनाई जाएगी।
उनकी महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे। उन्होंने बचपन से ही रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी थी, जब उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था।
जब पंडित जी बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- ‘पंडित जी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।’
‘अंतर मैल जे तीर्थ नावे तिसु बैंकुठ ना जाना/ लोग पतीणे कछु ना होई नाही राम अजाना,’ अर्थात सिर्फ जल से शरीर धोने से मन साफ नहीं हो सकता, तीर्थयात्रा की महानता चाहे कितनी भी क्यों न बताई जाए, तीर्थयात्रा सफल हुई है या नहीं, इसका निर्णय कहीं जाकर नहीं होगा। इसके लिए हर एक मनुष्य को अपने अंदर झांक कर देखना होगा कि तीर्थ के जल से शरीर धोने के बाद भी मन में निंदा, ईर्ष्या, धन-लालसा, काम, क्रोध आदि कितने कम हुए हैं। अत: नानक जी कहते हैं कि हमें अपने अंदर अवश्य ही झांकना चाहिए।
एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा- आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान। नानक देव जी ने कहा, ‘अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे/ एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे,’ अर्थात सब बंदे ईश्वर के पैदा किए हुए हैं, न तो हिंदू कहलाने वाला रब की निगाह में कबूल है, न मुसलमान कहलाने वाला। रब की निगाह में वही बंदा ऊंचा है जिसका अमल नेक हो, जिसका आचरण सच्चा हो।
गुरु नानक देव जी जनता को जगाने के लिए और धर्म प्रचारकों को उनकी खामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थस्थानों पर पहुंचे और लोगों से धर्मांधता से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने पितरों को भोजन यानी मरने के बाद करवाए जाने वाले भोजन का विरोध किया और कहा कि मरने के बाद दिया जाने वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता। हमें जीते जी ही मां-बाप की सेवा करनी चाहिए।
एक बार नानक जी ने तीर्थ स्थानों पर स्नान के लिए इकट्ठे हुए श्रद्धालुओं को समझाते हुए कहा- ‘मन मैले सभ किछ मैला, तन धोते मन अच्छा न होई,’ अर्थात अगर हमारा मन मैला है तो हम कितने भी सुंदर कपड़े पहन लें, अच्छे-से तन को साफ कर लें, बाहरी स्नान, सुंदर कपड़ों से हम संसार को तो अच्छे लग सकते हैं, मगर परमात्मा को नहीं, क्योंकि परमात्मा हमारे मन की अवस्था को देखता है।
उनके जीवन के एक अन्य प्रसंग के अनुसार बड़े होने पर नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रु. दिए और कहा- ‘इन 20 रु. से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देवजी सौदा करने निकले। रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानक देव जी ने उस साधु मंडली को 20 रु. का भोजन करवा दिया और लौट आए।
पिता जी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- ‘साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।’
नानक जी ने लोगों को सदा ही नेक राह पर चलने की समझाइश दी। वे कहते थे कि कि साधु-संगत और गुरबाणी का आसरा लेना ही जिंदगी का ठीक रास्ता है। उनका कहना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है, अगर हृदय में निर्दयता, नफरत, निंदा, क्रोध आदि विकार हैं तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के लिए तैयार नहीं हो सकता है। अत: इन सबसे दूर रहकर परमात्मा का नाम ही हृदय में बसाया जाना चाहिए।
अपनी पूरी जिंदगी मानव समाज के कल्याण में लगाने वाले गुरु नानक देव जी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए। गुरु नानक देव जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ईस्वी को आश्विन कृष्ण दशमी के दिन हुई थी। सिख धर्म में कार्तिक मास की पूर्णिमा को बड़े धूमधाम से गुरु नानक देव जी जयंती मनाई जाती है।
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