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जानकी जयंती 2024: सीताष्टमी पर जानें पूजा विधि, मंत्र, मुहूर्त, स्तुति, आरती, चालीसा, उपाय और कथा

Janaki Jayanti 2024 
 

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Sita Jayanti 2024: वर्ष 2024 में रविवार, 03 मार्च को जानकी जयंती पर्व मनाया जा रहा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण अष्टमी तिथि को माता सीता धरती पर अवतरित हुए थी। अत: इस दिन श्री जानकी जयंती, जानकी प्रकटोत्सव या सीता जयंती पर्व मनाया जाता है। देवी सीता मां लक्ष्मी जी का ही अवतार हैं।  इस बार सीताष्टमी व्रत कैलेंडर के मतांतर के चलते 03 मार्च तथा 04 मार्च को भी मनाया जाने की संभावना है। 

 

आइए यहां जानते हैं पूजन विधि, मंत्र, स्तुति, आरती़, चालीसा, उपाय, मुहूर्त तथा कथा के बारे में…

 

पूजा विधि- 

– फाल्गुन कृष्ण अष्टमी या सीताष्टमी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें।

– तप‍श्चात माता सीता तथा भगवान श्री राम की पूजा करें।

– राम-सीता की प्रतिमा पर श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं।

– श्री राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र पहनाएं। 

– इस दिन राम-सीता की संयुक्त रूप से पूजन करें। 

– तत्पश्चात आरती करें। 

– माता जानकी की जन्म कथा पढ़ें। 

– श्री राम तथा माता जानकी के मंत्रों का जाप करें। 

– दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें।

– शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें। 

 

सीताष्‍टमी/ जानकी जयंती के शुभ मुहूर्त 2024 

 

रविवार, 03 मार्च 2024 : जानकी जयंती पर्व

 

अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 03 मार्च 2024 को 12.14 ए एम से,

अष्टमी तिथि का समापन- 04 मार्च 2024 को 12.19 ए एम पर। 

 

3 मार्च 2024, रविवार :दिन का चौघड़िया

 

चर- 07.05 ए एम से 08.37 ए एम

लाभ- 08.37 ए एम से 10.09 ए एम

अमृत- 10.09 ए एम से 11.41 ए एम

शुभ- 01.13 पी एम से 02.45 पी एम

 

रात्रि का चौघड़िया

 

शुभ- 05.48 पी एम से 07.16 पी एम

अमृत- 07.16 पी एम से 08.45 पी एम

चर- 08.45 पी एम से 10.13 पी एम

लाभ- 01.09 ए एम से 04 मार्च 02.37 ए एम, 

शुभ- 04.05 ए एम से 04 मार्च 05.33 ए एम।

 

शुभ समय
 

ब्रह्म मुहूर्त- 03.59 ए एम से 04.46 ए एम

प्रातः सन्ध्या- 04.23 ए एम से 05.33 ए एम

अभिजित मुहूर्त- 11.16 ए एम से 12.05 पी एम

विजय मुहूर्त- 01.43 पी एम से 02.32 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 05.47 पी एम से 06.11 पी एम

सायाह्न सन्ध्या- 05.48 पी एम से 06.59 पी एम

अमृत काल- 10.54 पी एम से 04 मार्च 12.32 ए एम

निशिता मुहूर्त- 11.17 पी एम से 04 मार्च 12.04 ए एम तक।

 

उपाय-

– जानकी जयंती के दिन राम-सीता की एक तस्वीर घर के पूजा स्थान में लाकर रखें तथा उसका प्रतिदिन पूजन करें। इस उपाय से पति-पत्नी के बीच चल रहा कलह दूर होकर मधुर संबंध बनेंगे।

 

– सीताष्टमी व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं के वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां खत्म होती हैं।

 

– अगर कोई खास मनोकामना पूर्ण नहीं हो रही हो तो सीताष्टमी के दिन रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र की 1, 5, 11 या 21 माला का जाप करें।

मंत्र- ‘ॐ जानकी रामाभ्यां नमः’।

 

– जानकी जयंती के दिन सीता-राम जी का एक साथ पूजन करके माता सीता की मांग में 7 बार सिंदूर लगाएं और वहीं सिंदूर हर बार अपनी मांग में लगाएं, इससे वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है।

 

– यदि किसी कन्या की शादी में अड़चनें आ रही हैं गंगा या तुलसी के पेड़ की मिट्टी लेकर राम-सीता की प्रतिमा बनाकर उसका पूजन करके सुहाग सामग्री चढ़ाकर अच्छे वर की प्रार्थना करें। 

 

– सीता जयंती पर राम-सीता के पूजन से पति की आयु लंबी होती है।

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1. कथा- वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। 

 

तभी उन्हें धरती में से सोने की खूबसूरत संदूक में एक सुंदर कन्या मिली। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। 

 

2. कथा- माता सीता के जन्म से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है कि माता सीता लंकापति रावण और मंदोदरी की पुत्री थी। इस कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थी। वेदवती विष्णु जी की परमभक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की। 

 

कहा जाता है कि एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी और वेदवती की सुंदरता को देखकर रावण उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन वेदवती ने साथ जाने से इंकार कर दिया। वेदवती के मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी। 

 

कुछ समय बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। लेकिन वेदवती के श्राप से भयभीत रावण ने जन्म लेते ही उस कन्या को सागर में फेंक दिया। जिसके बाद सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया।

 

जिसके बाद राजा जनक ने सीता का पालन पोषण किया और उनका विवाह श्रीराम के साथ संपन्न कराया। फिर वनवास के दौरान रावण ने सीता का अपहरण किया जिसके कारण श्रीराम ने रावण का वध किया और इस तरह से सीता रावण के वध का कारण बनीं। 

 

मंत्र-

 

– श्री सीतायै नम:।

– श्रीरामचन्द्राय नम:।

– श्री रामाय नम:।

– श्रीसीता-रामाय नम:। 

– ॐ जानकीवल्लभाय नमः।

 

श्री जानकी स्तुति  

 

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।1।।

 

दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।2।।

 

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।

पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।3।।

 

पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।4।।

 

आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।

प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।5।।

 

नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।6।।

 

पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।7।।

 

आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।

नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।

सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।8।।

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सीता माता की आरती

 

आरति श्रीजनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

जगत-जननि जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि।

परम दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की।।

आरति श्रीजनक-दुलारी की।

 

सतीशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि।

पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की।।

आरति श्रीजनक-दुलारी की।।

 

विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई।

सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की।।

आरति श्रीजनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

 

जानकी चालीसा

 

।। दोहा।।

 

बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम,

राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम।।

 

कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम,

मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम।।

 

।। चौपाई।।

 

राम प्रिया रघुपति रघुराई, बैदेही की कीरत गाई।।

चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई।।

जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी।।

दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता।।

 

सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति।।

भारी शिव धनु खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई।।

भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा।।

जनक निराश भए लखि कारन, जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन।।

 

यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए।।

आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई।।

जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा।।

मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै।।

 

जय-जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी।।

सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले।।

मंगल बाज बजे चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा।।

लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई।।

 

कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा।।

कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय।।

सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई।।

मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन।।

 

कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली।।

चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा।।

आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई।।

सिय श्रीराम पथ पथ भटकैं, मृग मारीचि देखि मन अटकै।।

 

राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन।।

भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो।।

राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी।।

हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी।।

 

अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा।।

सेतु बांधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती।।

चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए।।

अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे।।

 

रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी।।

बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहां पै लीन्हो।।

विविध भांती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही।।

लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी, रामसिया सुत दुई पहिचानी।।

 

भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए।।

सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन।।

अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई।।

पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा।।

 

।। दोहा।।

 

जनकसुता अवनिधिया राम प्रिया लवमात,

चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात।।

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