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शिवस्तुति: | भगवान शंकर की शिव स्तुति हिंदी अर्थ सहित | Shiva Stuti Hindi Arth Sahit

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Shiv Stuti Mantra With Hindi Meaning: प्राचीन पुराण स्कन्द महापुराण के कुमारिका खंड में भगवान शिव की यह स्तुति है। यदि आप शिवस्तुति का अर्थ सहित पाठ करके भगवान शंकर भोलेनाथ महादेव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो यहां प्रस्तुति है प्रामाणिक स्तुति। भगवान शिव की स्तुति का पाठ करने से हर संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव स्तुति का पाठ सुनने से भी इच्छित फलों की प्राप्ति होने की मान्यता है।

 

स्कन्द उवाच

 

नम: शिवायास्तु निरामयाय नम: शिवायास्तु मनोमयाय।

नम: शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय।।1।।

 

नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्त मनोभवाय।

नमोस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय।।2।।

 

नमोऽस्तु शर्वाय नम: शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय।

नमोस्तु कालाय नम: कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय।।3।।

 

स्कन्दजी बोले- जो सब प्रकार के रोग-शोक से रहित हैं, उन कल्याणस्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है। जो सबके भीतर मन रूप से निवास करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है। सम्पूर्ण देवताओं से पूजित भगवान शंकर को नमस्कार है। भक्तजनों पर निरन्तर कृपा करने वाले आप भगवान महेश्वर को नमस्कार है।।1।।

 

सबकी उत्पत्ति के कारण भगवान भव को नमस्कार है। भगवन्! आप भव के उद्भव (संसार के सृष्टा) हैं, आपको नमस्कार है। कामदेव का विध्वंस करने वाले आपको नमस्कार है। आप गूढ़ भाव से महान व्रत का पालन करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप मायारूपी गहन वन के आश्रय हैं अथवा सबको आश्रय देने वाला आपका स्वरूप योगमाया समावृत होने के कारण दुर्बोध है, आपको नमस्कार है।।2।।

 

प्रलयकाल में जगत का संहार करने वाले ‘शर्व’ नामधारी आपको नमस्कार है। शिवरूप आपको नमस्कार है। आप पुरातन सिद्धरूप हैं, आपको नमस्कार है। कालरूप आपको नमस्कार है। आप सबकी कलना (गणना) करने वाले होने के कारण काल नाम से प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है। आप काल की कला का अतिक्रमण करके उससे बहुत दूर रहते हैं, आपको नमस्कार है।।3।।

 

नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय।

नम: शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय।।4।।

 

नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकार्त्रे नमोऽस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे।

नमोऽस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नम: सदा ते भगवन् सुकर्त्रे।।5।।

 

अनंतरूपाय सदैव तुभ्यमसह्योकोपाय सदैव तुभ्यम्।

अमेयमानाय नमोऽस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोऽस्तु तुभ्यम्।।6।।

 

नम: प्रसिद्धाय महौषधाय नमोऽस्तु ते व्याधिगणापहाय।

चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नम: शिवाय।।7।।

 

आप स्वाभाविक ऐश्वर्य से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है। आप अप्रमेय महिमा वाले वृषभ तथा महासमृद्धि से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है। आप सबको शरण देने वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है। आपके अनुगामी सेवक भयानक गुणसम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है।।4।।

 

नाना भुवनों पर अधिकार रखने वाले आपको नमस्कार है। भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाले आपको नमस्कार है। भगवन्! आप ही कर्मों का फल देने वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही सबका धारण-पोषण करनेवाले धाता तथा उत्तम कर्ता हैं, आपको सर्वदा नमस्कार है।।5।।

 

आपके अनन्त रूप हैं, आपका कोप सबके लिये असह्य है, आपको सदैव नमस्कार है। आपके स्वरूप का कोई माप नहीं हो सकता, आपको नमस्कार है। वृषभेन्द्र को अपना वाहन बनाने वाले आप भगवान महेश्वर को नमस्कार है।।6।।

 

आप सुप्रसिद्ध महौषध रूप हैं, आपको नमस्कार है। समस्त व्याधियों का विनाश करने वाले आपको नमस्कार है। आप चराचरस्वरूप, सबको विचार तत्त्वनिर्णयात्मिका शक्ति देने वाले, कुमारनाथ के नाम से प्रसिद्ध तथा परम कल्याणस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।।7।।

 

ममेश भूतेश महेश्वरोसि कामेश वागीश बलेश धीश।

क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोऽस्तु मोक्षेश गुहशयेश।।8।।

 

शिव उवाच

 

ये च सायं तथा प्रातस्त्वत्कृतेन स्तवेन माम्।

स्तोष्यन्ति परया भक्त्या श्रृणु तेषां च यत्फलम्।।9।।

 

न व्याधिर्न च दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम्।

भुक्त्वा भोगान् दुर्लभांश्च मम यास्यन्ति सद्म ते।।10।।

 

प्रभो! आप मेरे स्वामी हैं, सम्पूर्ण भूतों के ईश्वर एवं महेश्वर हैं। आप ही समस्त भोगों के अधिपति हैं। वाणी, बल और बुद्धि के अधिपति भी आप ही हैं। आप ही क्रोध और मोह पर शासन करने वाले हैं। पर और अपर (कारण और कार्य) के स्वामी भी आप ही हैं। सबकी हृदयगुहा में निवास करने वाले परमेश्वर तथा मुक्ति के अधीश्वर भी आप ही हैं, आपको नमस्कार है।।8।।

 

शिवजी ने कहा- जो लोग सायंकाल और प्रात:काल पूर्ण भक्तिपूर्वक तुम्हारे द्वारा की हुई इस स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उनको जो फल प्राप्त होगा, उसका वर्णन करता हूं, सुनो- उन्हें कोई रोग नहीं होगा, दरिद्रता भी नहीं होगी तथा प्रियजनों से कभी वियोग भी न होगा। वे इस संसार में दुर्लभ भोगों का उपभोग करके मेरे परमधाम को प्राप्त करेंगे।।9-10।।

 

।।इति श्री स्कन्दमहापुराणे कुमारिकाखण्डे शिवस्तुति: सम्पूर्णा।।

।।इस प्रकार श्री स्कन्दमहापुराण के कुमारिकाखण्ड में शिवस्तुति सम्पूर्ण हुई।।

 

संदर्भ : शिवस्तो‍त्ररत्नाकर (गीता प्रेस गोरखपुर)