Lakshmi Sahasranama Stotra
Lakshmi Sahasranama Stotra: समुद्र मंथन की लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु की पत्नी लक्ष्मी श्रीदेवी और भूदेवी सहित मां लक्ष्मी के सभी स्वरूपों का वंदना हेतु यहां पर पढ़ें लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ संस्कृत में। सुख, शांति, धन और समृद्धि के लिए इस स्त्रोत का पाठ करते हैं।
देवी लक्ष्मी की सहस्रनामावली | Lakshmi Sahasra Namavali
नित्यागतानन्तनित्या नन्दिनी जनरञ्जनी।
नित्यप्रकाशिनी चैव स्वप्रकाशस्वरूपिणी॥1॥
महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या सरस्वती।
भोगवैभवसन्धात्री भक्तानुग्रहकारिणी॥2॥
ईशावास्या महामाया महादेवी महेश्वरी।
हृल्लेखा परमा शक्तिर्मातृकाबीजरूपिणी॥3॥
नित्यानन्दा नित्यबोधा नादिनी जनमोदिनी।
सत्यप्रत्ययनी चैव स्वप्रकाशात्मरूपिणी॥4॥
त्रिपुरा भैरवी विद्या हंसा वागीश्वरी शिवा।
वाग्देवी च महारात्रिः कालरात्रिस्त्रिलोचना॥5॥
भद्रकाली कराली च महाकाली तिलोत्तमा।
काली करालवक्त्रान्ता कामाक्षी कामदा शुभा॥6॥
चण्डिका चण्डरूपेशा चामुण्डा चक्रधारिणी।
त्रैलोक्यजयिनी देवी त्रैलोक्यविजयोत्तमा॥7॥
सिद्धलक्ष्मीः क्रियालक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीः प्रसादिनी।
उमा भगवती दुर्गा चान्द्री दाक्षायणी शिवा॥8॥
प्रत्यङ्गिरा धरावेला लोकमाता हरिप्रिया।
पार्वती परमा देवी ब्रह्मविद्याप्रदायिनी॥9॥
अरूपा बहुरूपा च विरूपा विश्वरूपिणी।
पञ्चभूतात्मिका वाणी पञ्चभूतात्मिका परा॥10॥
काली मा पञ्चिका वाग्मी हविःप्रत्यधिदेवता।
देवमाता सुरेशाना देवगर्भाऽम्बिका धृतिः॥11॥
सङ्ख्या जातिः क्रियाशक्तिः प्रकृतिर्मोहिनी मही।
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या विभावर॥12॥
ज्योतिष्मती महामाता सर्वमन्त्रफलप्रद।
दारिद्र्यध्वंसिनी देवी हृदयग्रन्थिभेदिनी॥13॥
सहस्रादित्यसङ्काशा चन्द्रिका चन्द्ररूपिणी।
गायत्री सोमसम्भूतिस्सावित्री प्रणवात्मिका॥14॥
शाङ्करी वैष्णवी ब्राह्मी सर्वदेवनमस्कृता।
सेव्यदुर्गा कुबेराक्षी करवीरनिवासिनी॥15॥
जया च विजया चैव जयन्ती चाऽपराजिता।
कुब्जिका कालिका शास्त्री वीणापुस्तकधारिणी॥16॥
सर्वज्ञशक्तिश्श्रीशक्तिर्ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका।
इडापिङ्गलिकामध्यमृणालीतन्तुरूपिणी॥17॥
यज्ञेशानी प्रथा दीक्षा दक्षिणा सर्वमोहिनी।
अष्टाङ्गयोगिनी देवी निर्बीजध्यानगोचरा॥18॥
सर्वतीर्थस्थिता शुद्धा सर्वपर्वतवासिनी।
वेदशास्त्रप्रमा देवी षडङ्गादिपदक्रमा॥19॥
शिवा धात्री शुभानन्दा यज्ञकर्मस्वरूपिणी।
व्रतिनी मेनका देवी ब्रह्माणी ब्रह्मचारिणी॥20॥
एकाक्षरपरा तारा भवबन्धविनाशिनी।
विश्वम्भरा धराधारा निराधाराऽधिकस्वरा॥21॥
राका कुहूरमावास्या पूर्णिमाऽनुमतिर्द्युतिः।
सिनीवाली शिवाऽवश्या वैश्वदेवी पिशङ्गिला॥22॥
पिप्पला च विशालाक्षी रक्षोघ्नी वृष्टिकारिणी।
दुष्टविद्राविणी देवी सर्वोपद्रवनाशिनी॥23॥
शारदा शरसन्धाना सर्वशस्त्रस्वरूपिणी।
युद्धमध्यस्थिता देवी सर्वभूतप्रभञ्जनी॥24॥
अयुद्धा युद्धरूपा च शान्ता शान्तिस्वरूपिणी।
गङ्गा सरस्वतीवेणीयमुनानर्मदापगा॥25॥
समुद्रवसनावासा ब्रह्माण्डश्रोणिमेखला।
पञ्चवक्त्रा दशभुजा शुद्धस्फटिकसन्निभा॥26॥
रक्ता कृष्णा सिता पीता सर्ववर्णा निरीश्वरी।
कालिका चक्रिका देवी सत्या तु वटुकास्थिता॥27॥
तरुणी वारुणी नारी ज्येष्ठादेवी सुरेश्वरी।
विश्वम्भराधरा कर्त्री गलार्गलविभञ्जनी॥28॥
सन्ध्यारात्रिर्दिवाज्योत्स्त्ना कलाकाष्ठा निमेषिका।
उर्वी कात्यायनी शुभ्रा संसारार्णवतारिणी॥29॥
कपिला कीलिकाऽशोका मल्लिकानवमल्लिका।
देविका नन्दिका शान्ता भञ्जिका भयभञ्जिका॥30॥
कौशिकी वैदिकी देवी सौरी रूपाधिकाऽतिभा।
दिग्वस्त्रा नववस्त्रा च कन्यका कमलोद्भवा॥31॥
श्रीस्सौम्यलक्षणाऽतीतदुर्गा सूत्रप्रबोधिका।
श्रद्धा मेधा कृतिः प्रज्ञा धारणा कान्तिरेव च॥32॥
श्रुतिः स्मृतिर्धृतिर्धन्या भूतिरिष्टिर्मनीषिणी।
विरक्तिर्व्यापिनी माया सर्वमायाप्रभञ्जनी॥33॥
माहेन्द्री मन्त्रिणी सिंही चेन्द्रजालस्वरूपिणी।
अवस्थात्रयनिर्मुक्ता गुणत्रयविवर्जिता॥34॥
ईषणात्रयनिर्मुक्ता सर्वरोगविवर्जिता।
योगिध्यानान्तगम्या च योगध्यानपरायणा॥35॥
त्रयीशिखा विशेषज्ञा वेदान्तज्ञानरूपिणी।
भारती कमला भाषा पद्मा पद्मवती कृतिः॥36॥
गौतमी गोमती गौरी ईशाना हंसवाहनी।
नारायणी प्रभाधारा जाह्नवी शङ्करात्मजा॥37॥
चित्रघण्टा सुनन्दा श्रीर्मानवी मनुसम्भवा।
स्तम्भिनी क्षोभिणी मारी भ्रामिणी शत्रुमारिणी॥38॥
मोहिनी द्वेषिणी वीरा अघोरा रुद्ररूपिणी।
रुद्रैकादशिनी पुण्या कल्याणी लाभकारिणी॥39॥
देवदुर्गा महादुर्गा स्वप्नदुर्गाऽष्टभैरवी।
सूर्यचन्द्राग्निरूपा च ग्रहनक्षत्ररूपिणी॥40॥
बिन्दुनादकलातीता बिन्दुनादकलात्मिका।
दशवायुजयाकारा कलाषोडशसंयुता॥41॥
काश्यपी कमलादेवी नादचक्रनिवासिनी।
मृडाधारा स्थिरा गुह्या देविका चक्ररूपिणी॥42॥
अविद्या शार्वरी भुञ्जा जम्भासुरनिबर्हिणी।
श्रीकाया श्रीकला शुभ्रा कर्मनिर्मूलकारिणी॥43॥
आदिलक्ष्मीर्गुणाधारा पञ्चब्रह्मात्मिका परा।
श्रुतिर्ब्रह्ममुखावासा सर्वसम्पत्तिरूपिणी॥44॥
मृतसञ्जीविनी मैत्री कामिनी कामवर्जिता।
निर्वाणमार्गदा देवी हंसिनी काशिका क्षमा॥45॥
सपर्या गुणिनी भिन्ना निर्गुणा खण्डिताशुभा।
स्वामिनी वेदिनी शक्या शाम्बरी चक्रधारिणी॥46॥
दण्डिनी मुण्डिनी व्याघ्री शिखिनी सोमसंहतिः।
चिन्तामणिश्चिदानन्दा पञ्चबाणाग्रबोधिन॥47॥
बाणश्रेणिस्सहस्राक्षी सहस्रभुजपादुक।
सन्ध्यावलिस्त्रिसन्ध्याख्या ब्रह्माण्डमणिभूषणा॥48॥
वासवी वारुणीसेना कुलिका मन्त्ररञ्जनी।
जितप्राणस्वरूपा च कान्ता काम्यवरप्रदा॥49॥
मन्त्रब्राह्मणविद्यार्था नादरूपा हविष्मती।
आथर्वणी श्रुतिशून्या कल्पनावर्जिता सती॥50॥
सत्ताजातिः प्रमाऽमेयाऽप्रमितिः प्राणदा गतिः।
अवर्णा पञ्चवर्णा च सर्वदा भुवनेश्वरी॥51॥
त्रैलोक्यमोहिनी विद्या सर्वभर्त्री क्षराऽक्षरा।
हिरण्यवर्णा हरिणी सर्वोपद्रवनाशिनी॥52॥
कैवल्यपदवीरेखा सूर्यमण्डलसंस्थिता।
सोममण्डलमध्यस्था वह्निमण्डलसंस्थिता॥53॥
वायुमण्डलमध्यस्था व्योममण्डलसंस्थिता।
चक्रिका चक्रमध्यस्था चक्रमार्गप्रवर्तिनी॥54॥
कोकिलाकुलचक्रेशा पक्षतिः पंक्तिपावनी।
सर्वसिद्धान्तमार्गस्था षड्वर्णावरवर्जिता॥55॥
शररुद्रहरा हन्त्री सर्वसंहारकारिणी।
पुरुषा पौरुषी तुष्टिस्सर्वतन्त्रप्रसूतिका॥56॥
अर्धनारीश्वरी देवी सर्वविद्याप्रदायिनी।
भार्गवी याजुषीविद्या सर्वोपनिषदास्थिता॥57॥
व्योमकेशाखिलप्राणा पञ्चकोशविलक्षणा।
पञ्चकोशात्मिका प्रत्यक्पञ्चब्रह्मात्मिका शिवा॥58॥
जगज्जराजनित्री च पञ्चकर्मप्रसूतिका।
वाग्देव्याभरणाकारा सर्वकाम्यस्थितस्थितिः॥59॥
अष्टादशचतुष्षष्ठिपीठिका विद्यया युता।
कालिकाकर्षणश्यामा यक्षिणी किन्नरेश्वरी॥60॥
केतकी मल्लिकाशोका वाराही धरणी ध्रुवा।
नारसिंही महोग्रास्या भक्तानामार्तिनाशिनी॥61॥
अन्तर्बला स्थिरा लक्ष्मीर्जरामरणनाशिनी।
श्रीरञ्जिता महाकाया सोमसूर्याग्निलोचना॥62॥
अदितिर्देवमाता च अष्टपुत्राऽष्टयोगिनी।
अष्टप्रकृतिरष्टाष्टविभ्राजद्विकृताकृतिः॥63॥
दुर्भिक्षध्वंसिनी देवी सीता सत्या च रुक्मिणी।
ख्यातिजा भार्गवी देवी देवयोनिस्तपस्विनी॥64॥
शाकम्भरी महाशोणा गरुडोपरिसंस्थिता।
सिंहगा व्याघ्रगा देवी वायुगा च महाद्रिगा॥65॥
अकारादिक्षकारान्ता सर्वविद्याधिदेवता।
मन्त्रव्याख्याननिपुणा ज्योतिश्शास्त्रैकलोचना॥66॥
इडापिङ्गलिकामध्यासुषुम्ना ग्रन्थिभेदिनी।
कालचक्राश्रयोपेता कालचक्रस्वरूपिणी॥67॥
वैशारदी मतिश्श्रेष्ठा वरिष्ठा सर्वदीपिका।
वैनायकी वरारोहा श्रोणिवेला बहिर्वलिः॥68॥
जम्भिनी जृम्भिणी जृम्भकारिणी गणकारिका।
शरणी चक्रिकाऽनन्ता सर्वव्याधिचिकित्सकी॥69॥
देवकी देवसङ्काशा वारिधिः करुणाकरा।
शर्वरी सर्वसम्पन्ना सर्वपापप्रभञ्जिनी॥70॥
एकमात्रा द्विमात्रा च त्रिमात्रा च तथापरा।
अर्धमात्रा परा सूक्ष्मा सूक्ष्मार्थाऽर्थपराऽपरा॥71॥
एकवीरा विशेषाख्या षष्ठीदेवी मनस्विनी।
नैष्कर्म्या निष्कलालोका ज्ञानकर्माधिका गुणा॥72॥
सबन्ध्वानन्दसन्दोहा व्योमाकाराऽनिरूपिता।
गद्यपद्यात्मिका वाणी सर्वालङ्कारसंयुता॥73॥
साधुबन्धपदन्यासा सर्वौको घटिकावलिः।
षट्कर्मा कर्कशाकारा सर्वकर्मविवर्जिता॥74॥
आदित्यवर्णा चापर्णा कामिनी वररूपिणी।
ब्रह्माणी ब्रह्मसन्ताना वेदवागीश्वरी शिवा॥75॥
पुराणन्यायमीमांसाधर्मशास्त्रागमश्रुता।
सद्योवेदवती सर्वा हंसी विद्याधिदेवता॥76॥
विश्वेश्वरी जगद्धात्री विश्वनिर्माणकारिणी।
वैदिकी वेदरूपा च कालिका कालरूपिणी॥77॥
नारायणी महादेवी सर्वतत्त्वप्रवर्तिनी।
हिरण्यवर्णरूपा च हिरण्यपदसम्भवा॥78॥
कैवल्यपदवी पुण्या कैवल्यज्ञानलक्षिता।
ब्रह्मसम्पत्तिरूपा च ब्रह्मसम्पत्तिकारिणी॥79॥
वारुणी वारुणाराध्या सर्वकर्मप्रवर्तिनी।
एकाक्षरपराऽऽयुक्ता सर्वदारिद्र्यभञ्जिनी॥80॥
पाशांकुशान्विता दिव्या वीणाव्याख्याक्षसूत्रभृत्।
एकमूर्तिस्त्रयीमूर्तिर्मधुकैटभभञ्जिनी॥81॥
सांख्या सांख्यवती ज्वाला ज्वलन्ती कामरूपिणी।
जाग्रन्ती सर्वसम्पत्तिस्सुषुप्तान्वेष्टदायिी॥82॥
कपालिनी महादंष्ट्रा भ्रुकुटी कुटिलाना।
सर्वावासा सुवासा च बृहत्यष्टिश्च शक्वरी॥83॥
छन्दोगणप्रतिष्ठा च कल्माषी करुणात्मिका।
चक्षुष्मती महाघोषा खड्गचर्मधराऽशनिः॥84॥
शिल्पवैचित्र्यविद्योता सर्वतोभद्रवासिनी।
अचिन्त्यलक्षणाकारा सूत्रभाष्यनिबन्धना॥85॥
सर्ववेदार्थसम्पत्तिस्सर्वशास्त्रार्थमातृका।
अकारादिक्षकारान्तसर्ववर्णकृतस्थला॥86॥
सर्वलक्ष्मीस्सदानन्दा सारविद्या सदाशिवा।
सर्वज्ञा सर्वशक्तिश्च खेचरीरूपगोच्छ्रिता॥87॥
अणिमादिगुणोपेता परा काष्ठा परा गतिः।
हंसयुक्तविमानस्था हंसारूढा शशिप्रभा॥88॥
भवानी वासनाशक्तिराकृतिस्थाखिलाऽखिला।
तन्त्रहेतुर्विचित्राङ्गी व्योमगङ्गाविनोदिनी॥89॥
वर्षा च वार्षिका चैव ऋग्यजुस्सामरूपिणी।
महानदीनदीपुण्याऽगण्यपुण्यगुणक्रिया॥90॥
समाधिगतलभ्यार्था श्रोतव्या स्वप्रिया घृणा।
नामाक्षरपरा देवी उपसर्गनखाञ्चिता॥91॥
निपातोरुद्वयीजङ्घा मातृका मन्त्ररूपिणी।
आसीना च शयाना च तिष्ठन्ती धावनाधिका॥92॥
लक्ष्यलक्षणयोगाढ्या ताद्रूप्यगणनाकृतिः।
सैकरूपा नैकरूपा सेन्दुरूपा तदाकृतिः॥93॥
समासतद्धिताकारा विभक्तिवचनात्मिका।
स्वाहाकारा स्वधाकारा श्रीपत्यर्धाङ्गनन्दिनी॥94॥
गम्भीरा गहना गुह्या योनिलिङ्गार्धधारिणी।
शेषवासुकिसंसेव्या चषाला वरवर्णिनी॥95॥
कारुण्याकारसम्पत्तिः कीलकृन्मन्त्रकीलिका।
शक्तिबीजात्मिका सर्वमन्त्रेष्टाक्षयकामना॥96॥
आग्नेयी पार्थिवा आप्या वायव्या व्योमकेतना।
सत्यज्ञानात्मिकाऽऽनन्दा ब्राह्मी ब्रह्म सनातनी॥97॥
अविद्यावासना मायाप्रकृतिस्सर्वमोहिनी।
शक्तिर्धारणशक्तिश्च चिदचिच्छक्तियोगिनी॥98॥
वक्त्रारुणा महामाया मरीचिर्मदमर्दिनी।
विराड् स्वाहा स्वधा शुद्धा नीरूपास्तिस्सुभक्तिगा॥99॥
निरूपिताद्वयीविद्या नित्यानित्यस्वरूपिणी।
वैराजमार्गसञ्चारा सर्वसत्पथदर्शिनी॥100॥
जालन्धरी मृडानी च भवानी भवभञ्जनी।
त्रैकालिकज्ञानतन्तुस्त्रिकालज्ञानदायिनी॥101॥
नादातीता स्मृतिः प्रज्ञा धात्रीरूपा त्रिपुष्करा।
पराजिताविधानज्ञा विशेषितगुणात्मिका॥102॥
हिरण्यकेशिनी हेमब्रह्मसूत्रविचक्षणा।
असंख्येयपरार्धान्तस्वरव्यञ्जनवैखरी॥103॥
मधुजिह्वा मधुमती मधुमासोदया मधुः।
माधवी च महाभागा मेघगम्भीरनिस्वना॥104॥
ब्रह्मविष्णुमहेशादिज्ञातव्यार्थविशेषगा।
नाभौ वह्निशिखाकारा ललाटे चन्द्रसन्निभा॥105॥
भ्रूमध्ये भास्कराकारा सर्वताराकृतिर्हृदि।
कृत्तिकादिभरण्यन्तनक्षत्रेष्ट्यार्चितोदया॥106॥
ग्रहविद्यात्मिका ज्योतिर्ज्योतिर्विन्मतिजीविका।
ब्रह्माण्डगर्भिणी बाला सप्तावरणदेवता॥107॥
वैराजोत्तमसाम्राज्या कुमारकुशलोदया।
बगला भ्रमराम्बा च शिवदूती शिवात्मिका॥108॥
मेरुविन्ध्यादिसंस्थाना काश्मीरपुरवासिनी।
योगनिद्रा महानिद्रा विनिद्रा राक्षसाश्रिता॥109॥
सुवर्णदा महागङ्गा पञ्चाख्या पञ्चसंहतिः।
सुप्रजाता सुवीरा च सुपोषा सुपतिश्शिवा॥110॥
सुगृहा रक्तबीजान्ता हतकन्दर्पजीविका।
समुद्रव्योममध्यस्था समबिन्दुसमाश्रया॥111॥
सौभाग्यरसजीवातुस्सारासारविवेकदृक्।
त्रिवल्यादिसुपुष्टाङ्गा भारती भरताश्रिता॥112॥
नादब्रह्ममयीविद्या ज्ञानब्रह्ममयीपरा।
ब्रह्मनाडी निरुक्तिश्च ब्रह्मकैवल्यसाधनम्॥113॥
कालिकेयमहोदारवीर्यविक्रमरूपिणी।
वडबाग्निशिखावक्त्रा महाकबलतर्पणा॥114॥
महाभूता महादर्पा महासारा महाक्रतुः।
पञ्जभूतमहाग्रासा पञ्चभूताधिदेवता॥115॥
सर्वप्रमाणा सम्पत्तिस्सर्वरोगप्रतिक्रिया।
ब्रह्माण्डान्तर्बहिर्व्याप्ता विष्णुवक्षोविभूषणी॥116॥
शाङ्करी विधिवक्त्रस्था प्रवरा वरहेतुकी।
हेममाला शिखामाला त्रिशिखा पञ्चमोचना॥117॥
सर्वागमसदाचारमर्यादा यातुभञ्जनी।
पुण्यश्लोकप्रबन्धाढ्या सर्वान्तर्यामिरूपिणी॥118॥
सामगानसमाराध्या श्रोत्रकर्णरसायनम्।
जीवलोकैकजीवातुर्भद्रोदारविलोकना॥119॥
तटित्कोटिलसत्कान्तिस्तरुणी हरिसुन्दरी।
मीननेत्रा च सेन्द्राक्षी विशालाक्षी सुमङ्गला॥120॥
सर्वमङ्गलसम्पन्ना साक्षान्मङ्गलदेवता।
देहहृद्दीपिका दीप्तिर्जिह्मपापप्रणाशिनी॥121॥
अर्धचन्द्रोल्लसद्दंष्ट्रा यज्ञवाटीविलासिनी।
महादुर्गा महोत्साहा महादेवबलोदया॥122॥
डाकिनीड्या शाकिनीड्या साकिनीड्या समस्तजुट्।
निरङ्कुशा नाकिवन्द्या षडाधाराधिदेवता॥123॥
भुवनज्ञानिनिश्श्रेणी भुवनाकारवल्लरी।
शाश्वती शाश्वताकारा लोकानुग्रहकारिणी॥124॥
सारसी मानसी हंसी हंसलोकप्रदायिनी।
चिन्मुद्रालङ्कृतकरा कोटिसूर्यसमप्रभा॥125॥
सुखप्राणिशिरोरेखा सददृष्टप्रदायिनी।
सर्वसाङ्कर्यदोषघ्नी ग्रहोपद्रवनाशिनी॥126॥
क्षुद्रजन्तुभयघ्नी च विषरोगादिभञ्जनी।
सदाशान्ता सदाशुद्धा गृहच्छिद्रनिवारिणी॥127॥
कलिदोषप्रशमनी कोलाहलपुरस्स्थिता।
गौरी लाक्षणकी मुख्या जघन्याकृतिवर्जित॥128॥
माया विद्या मूलभूता वासवी विष्णुचेतन।
वादिनी वसुरूपा च वसुरत्नपरिच्छदा॥129॥
छान्दसी चन्द्रहृदया मन्त्रस्वच्छन्दभैरवी।
वनमाला वैजयन्ती पञ्चदिव्यायुधात्मिका॥130॥
पीताम्बरमयी चञ्चत्कौस्तुभा हरिकामिनी।
नित्या तथ्या रमा रामा रमणी मृत्युभञ्जी॥131॥
ज्येष्ठा काष्ठा धनिष्ठान्ता शराङ्गी निर्गुणप्रिा।
मैत्रेया मित्रविन्दा च शेष्यशेषकलाशया॥132॥
वाराणसीवासरता चार्यावर्तजनस्तुता।
जगदुत्पत्तिसंस्थानसंहारत्रयकारणम्॥133॥
त्वमम्ब विष्णुसर्वस्वं नमस्तेऽस्तु महेश्वरि।
नमस्ते सर्वलोकानां जनन्यै पुण्यमूर्तये॥134॥
सिद्धलक्ष्मीर्महाकालि महलक्ष्मि नमोऽस्तु ते।
सद्योजातादिपञ्चाग्निरूपा पञ्चकपञ्चकम्॥135॥
यन्त्रलक्ष्मीर्भवत्यादिराद्याद्ये ते नमो नमः।
सृष्ट्यादिकारणाकारवितते दोषवर्जिते॥136॥
जगल्लक्ष्मीर्जगन्मातर्विष्णुपत्नि नमोऽस्तु ते।
जगन्नवकोटिमहाशक्तिसमुपास्यपदाम्बुजे॥137॥
कनत्सौवर्णरत्नाढ्ये सर्वाभरणभूषिते।
अनन्तानित्यमहिषीप्रपञ्चेश्वरनायकि॥138॥
अत्युच्छ्रितपदान्तस्थे परमव्योमनायकि।
नाकपृष्ठगताराध्ये विष्णुलोकविलासिनि॥139॥
वैकुण्ठराजमहिषि श्रीरङ्गनगराश्रिते।
रङ्गनायकि भूपुत्रि कृष्णे वरदवल्लभे॥140॥
कोटिब्रह्मादिसंसेव्ये कोटिरुद्रादिकीर्तिते।
मातुलुङ्गमयं खेटं सौवर्णचषकं तथा॥141॥
पद्मद्वयं पूर्णकुम्भं कीरञ्च वरदाभये।
पाशमङ्कुशकं शङ्खं चक्रं शूलं कृपाणिकाम्॥142॥
धनुर्बाणौ चाक्षमालां चिन्मुद्रामपि बिभ्रती।
अष्टादशभुजे लक्ष्मीर्महाष्टादशपीठगे॥143॥
भूमिनीलादिसंसेव्ये स्वामिचित्तानुवर्तिन।
पद्मे पद्मालये पद्मि पूर्णकुम्भाभिषेचिते॥144॥
इन्दिरेन्दिन्दिराभाक्षि क्षीरसागरकन्यके।
भार्गवि त्वं स्वतन्त्रेच्छा वशीकृतजगत्पतिः॥145॥
मङ्गलं मङ्गलानां त्वं देवतानां च देवता।
त्वमुत्तमोत्तमानाञ्च त्वं श्रेयः परमामृतम्॥146॥
धनधान्याभिवृद्धिश्च सार्वभौमसुखोच्छ्रया।
आन्दोलिकादिसौभाग्यं मत्तेभादिमहोदयः॥147॥
पुत्रपौत्राभिवृद्धिश्च विद्याभोगबलादिकम्।
आयुरारोग्यसम्पत्तिरष्टैश्वर्यं त्वमेव हि॥148॥
पदमेव विभूतिश्च सूक्ष्मासूक्ष्मतरागतिः।
सदयापाङ्गसन्दत्तब्रह्मेन्द्रादिपदस्थितिः॥149॥
अव्याहतमहाभाग्यं त्वमेवाक्षोभ्यविक्रमः।
समन्वयश्च वेदानामविरोधस्त्वमेव हि॥150॥
निःश्रेयसपदप्राप्तिसाधनं फलमेव च।
श्रीमन्त्रराजराज्ञी च श्रीविद्या क्षेमकारिणी॥151॥
श्रीबीजजपसन्तुष्टा ऐं ह्रीं श्रीं बीजपालिका।
प्रपत्तिमार्गसुलभा विष्णुप्रथमकिङ्करी॥152॥
क्लीङ्कारार्थसवित्री च सौमङ्गल्याधिदेवता।
श्रीषोडशाक्षरीविद्या श्रीयन्त्रपुरवासिनी॥153॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥154॥
॥ इति श्रीलक्ष्मीसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥