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श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा

Shree Vindheshwari Chalisa: भगवान श्री कृष्‍ण की बहन है माता विन्ध्यवासिनी। जिस समय श्रीकृष्‍ण का जन्म हुआ था उसी समय माता यशोदा के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ था। यही पुत्री मां विंध्यवासिनी हैं।  भगवान विष्णु की आज्ञा से माता योगमाया ने ही यशोदा मैया के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था। भारत में मां विंध्यवासिनी की पूजा और साधना का बहुत प्रचलन है। उनकी साधना तुरंत ही फलित होती है। आओ उनकी चालीसा पढ़ें।

 

 

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा | Shree Vindheshwari Chalisa

 

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदंब | 

संत जनों के काज में, करती नहीं बिलंब ॥

 

जय जय जय बिंध्याचल रानी ।

आदि सक्ति जगबिदित भवानी ॥

 

सिंह बाहिनी जय जगमाता। 

जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥

 

कष्ट निवारिनि जय जग देवी। 

जय जय संत असुर सुरसेवी ॥

 

महिमा अमित अपार तुम्हारी । 

सेष सहस मुख बरनत हारी ॥

 

दीनन के दुख हरत भवानी । 

नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी ॥

 

सब कर मनसा पुरवत माता ।

महिमा अमित जगत बिख्याता।।

 

जो जन ध्यान तुम्हारो लावे ।

सो तुरतहिं बांछित फल पावे ॥ 

 

तू ही बैस्नवी तू ही रुद्रानी । 

तू ही सारदा अरु ब्रह्मानी ॥ 

 

रमा राधिका स्यामा काली । 

तू ही मात संतन प्रतिपाली ॥

 

उमा माधवी चंडी ज्वाला । 

बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 

 

तुम ही हिंगलाज महरानी ।

 तुम ही सीतला अरु बिज्ञानी ॥ 

 

तुम्ही लच्छमी जग सुख दाता ।

दुर्गा दुर्ग बिनासिनि माता ॥

 

तुम ही जाह्नवी अरु उन्नानी । 

हेमावती अंबे निरबानी ॥ 

 

अष्टभुजी बाराहिनि देवा । 

करत बिस्नु सिव जाकर सेवा ॥

 

चौसट्टी देबी कल्यानी।

गौरि मंगला सब गुन खानी ॥

 

पाटन मुंबा दंत कुमारी । 

भद्रकाली सुन बिनय हमारी॥ 

 

बज्रधारिनी सोक नासिनी । 

आयु रच्छिनी बिंध्यबासिनी ॥ 

 

जया और बिजया बैताली । 

मातु संकटी अरु बिकराली ॥

नाम अनंत तुम्हार भवानी।

बारनै किमि मानुष अज्ञानी ॥

 

जापर कृपा मातु तव होई ।

तो वह करै चहै मन जोई ॥

 

कृपा करहु मोपर महारानी । 

सिध करिये अब यह मम बानी ॥

 

जो नर धेरै मातु कर ध्याना । 

ताकर सदा होय कल्याना ॥

 

बिपति ताहि सपनेहु नहि आवै । 

जो देबी का जाप करावै ॥

 

जो नर कहे रिन होय अपारा। 

सो नर पाठ करे सतबारा ।।

 

निःचय रिनमोचन होड़ जाई । 

जो नर पाठ करे मन लाई ॥ 

 

अस्तुति जो नर पढ़ें पढ़ावै । 

या जग में सो बहु सुख पावै ॥ 

 

जाको ब्याधि सतावै भाई।

जाप करत सब दूर पराई ॥

 

जो नर अति बंदी महँ होई ।

बार हजार पाठ कर सोई ॥

 

निःचय बंदी ते छुटि जाई । 

सत्य बचन मम मानहु भाई ॥

 

जापर जो कुछ संकट होई । 

निःचय देबिहि सुमिरै सोई ॥

 

जा कहँ पुत्र होय नहि भाई । 

सो नर या बिधि करै उपाई ॥ 

 

पाँच बरष सो पाठ करावै । 

नौरातर महँ बिप्र जिमावै ॥

 

निःचय होहि प्रसन्न भवानी । 

पुत्र देहि ताकहँ गुन खानी ॥

 

ध्वजा नारियल आन चढ़ावै । 

बिधि समेत पूजन करवावै ॥

 

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।

प्रेम सहित नहि आन उपाई ॥

 

यह श्री बिंध्याचल चालीसा । 

रंक पढ़त होवै अवनीसा ॥

 

यह जनि अचरज मानहु भाई ।

कृपा दृष्टि जापर है जाई ॥ 

 

जय जय जय जग मातु भवानी । 

कृपा करहु मोहि पर जन जानी ॥

 

॥ श्रीविन्ध्येश्वरीचालीसा सम्पूर्ण ॥