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वसंत पंचमी का महत्व : विद्या की देवी सरस्वती से लीजिए शांत और पवित्र मन की प्रेरणा

 

हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस होने से इस दिन सरस्वती जयंती, श्रीपंचमी आदि पर्व भी होते हैं। वैसे सायन कुंभ में सूर्य आने पर वसंत शुरू होता है। इस दिन से वसंत राग, वसंत के प्यार भरे गीत, राग-रागिनियां गाने की शुरुआत होती है। इस दिन सात रागों में से पंचम स्वर (वसंत राग) में गायन, कामदेव, उनकी पत्नी रति और वसंत की पूजा की जाती है। देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द व शक्ति की प्राप्ति जीव को हुई थी। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी।

सरस्वती को बागीश्वरी भगवती, शारदा, वीणावादनी और वारदेवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी है। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। पद्मपुराण में मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है। शुभवस्त्र धारण किए हैं और उनके चार हाथ हैं जिनमें वीणा, पुस्तकमाला और अक्षरमाला है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मां सरस्वती का वाहन सफेद हंस है। सरस्वती का वाहन हंस विवेक का परिचायक है।

 

एक हाथ में पुस्तक, संदेश देती है कि हमारा लगाव पुस्तकों के प्रति, साहित्य के प्रति हो । विद्यार्थी कभी पुस्तकों से अलग न हों, भौतिक रूप से भले ही कभी किताबों से दूर रहे, लेकिन हमेशा मानसिक रूप से किताबों के साथ रहें। दो हाथों से वीणा का वादन, यह संकेत करता है कि विद्यार्थी जीवन में ही संगीत जैसी ललित कलाओं प्रति भी हमारी रुचि होनी चाहिए। संगीत हमारी याददाश्त बढ़ाने में भी सहायक होता है। दो हाथों में वीणा ललित कला में प्रवीण होने की प्रेरणा देती हैं। जिस प्रकार वीणा के सभी तारों में सामंजस्य होने से मधुर संगीत निकलता है वैसे ही मनुष्य अपने जीवन में मन व बुद्धि का सही तालमेल रखे।

 

 चित्र में देवी सरस्वती नदी किनारे एकांत में बैठी है, यह संकेत है कि विद्यार्जन के लिए एकांत भी आवश्यक है। विद्यार्थी को थोड़ा समय एकांत में भी बिताना चाहिए। एक हाथ में माला है, यह बताती है कि हमें हमेशा चिंतन में रहना चाहिए, जो ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। उसका लगातार मनन करते रहें. इससे आपकी मेधा बढ़ेगी। शुभवस्त्र मानव को प्रेरणा देते हैं कि अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाएं और क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार आदि का परित्याग करें। सरस्वती के पीछे सूरज भी उगता दिखाई देता है, यह बताता है कि पढ़ाई के लिए सुबह का समय ही श्रेष्ठ है।

सरस्वती के सामने दो हंस है, बुद्धि के प्रतीक हैं, हमारी बुद्धि रचनात्मक और विश्लेषणात्मक दोनों होनी चाहिए। क्योंकि हंस दूध ग्रहण कर पानी छोड़ देने का अद्भुत गुण होता है। 

 

श्वेत रंग पसंद मां सरस्वती प्रेरणा देतीं हैं कि मन शांत और पवित्र हो। हमारा ज्ञान निर्मल हो श्वेत रंग की तरह, विकृत न हो. जो भी ज्ञान प्राप्त करें वो सकारात्मक हो. यही बात हमारे चरित्र को लेकर भी है। कोई भी दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो, एकदम शुभ्र दमक के साथ हो। मां सरस्वती सभी पर कृपालु हों।