Diwali shani ravi Pushya yog 2023 : ज्योतिष मान्यता के अनुसार दिवाली के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र के दिन इस बार 400 साल बाद अष्ट महायोग का निर्माण हो रहा है। इसी के साथ इस बार 4 नवंबर को शनि पुष्य और 5 नवंबर को रवि पुष्य का योग भी बन रहा है। इस तरह के दुर्लभ योग में हर कार्य शुभ होगा और उन्नति चौगुनी होगी।
पुष्य नक्षत्र प्रारंभ और समापन समय:
पुष्य नक्षत्र का प्रारंभ : 4 नवंबर 2023 सुबह 07:57 से…
पुष्य नक्षत्र का समापन : 5 नवंबर 2023 सुबह 10:29 तक।
4 नवंबर 2023 शनिवार को शनि पुष्य नक्षत्र योग के दौरान अष्ट महायोग:-
शनिवार के आने वाले पुष्य नक्षत्र को शनि पुष्य योग कहते हैं, जो सुबह 07:57 से प्रारंभ होगा।
इस दिन 1. हर्ष, 2. सरल, 3. शंख, 4. लक्ष्मी, 5. शश, 6. साध्य, 7. मित्र और 8. गजकेसरी योग यानी अष्ट महायोग का निर्माण हो रहा है।
इसी दिन मुहूर्तों में श्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक रहेगा।
विजय मुहूर्त : दोपहर 01:54 से दोपहर 02:38 तक।
त्रिपुष्कर योग : सुबह 06:35 से 07:57 तक।
रवि योग : सुबह 06:35 से 07:57 तक।
साध्य योग: प्रात:काल से दोपहर 01:03 बजे तक।
शुभ योग: दोपहर 01:03 बजे से रात तक।
5 नवंबर 2023 के शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:43 से दोपहर 12:26 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:54 से दोपहर 02:38 तक।
रवि पुष्य योग: प्रात: 06:36 से सुबह 10:29 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रात: 06:36 से सुबह 10:29 तक।
शुभ योग: प्रात:काल से लेकर दोपहर 01:37 बजे तक।
शुक्ल योग: दोपहर 01:37 बजे से अगले दिन दोपहर तक।
इसके अलावा इस दिन वाशि, सरल, श्रीवत्स, अमला और गजकेसरी योग बन रहे हैं।
पुष्य नक्षत्र के बारे में रोचक जानकारी :
पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा कहा गया है।
यह 27 नक्षत्रों में आठवें क्रम पर आता है।
पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति और स्वामी शनि हैं।
पुष्य नक्षत्र के सिरे पर बहुत से सूक्ष्म तारे हैं जो कांति घेरे के अत्यधिक समीप हैं।
पुष्य नक्षत्र के मुख्य रूप से तीन तारे हैं, जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दिखाई देते हैं।
इसके तीर की नोक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ या पुंज के रूप में दिखाई देती है।
आकाश में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है।
पुष्य नक्षत्र का शुभ योग हर महीने में बनता है। पुष्य नक्षत्र स्थायी होता है़ अत: इस नक्षत्र में खरीदी की गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है। पुष्य नक्षत्र पर बृहस्पति (गुरु), शनि और चंद्र का प्रभाव होता है इसलिए सोना, चांदी, लोहा, बही खाता, परिधान, उपयोगी वस्तुएं खरीदना और बड़े निवेश करना इस नक्षत्र में अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। स्वामी शनि है अत: लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदते हैं। स्वर्ण, लोहा या वाहन आदि और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है।
वर्ष के सभी पुष्य नक्षत्रों में कार्तिक पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध कार्तिक मास के प्रधान देवता भगवान लक्ष्मी नारायण से है।
इसीलिए दिवाली पूर्व आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे खास और अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से प्रकृति से जुड़कर दैनिक प्रक्रिया करने की सलाह देती है।
पुष्य को ऋग्वेद में वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता, एवं आनंदकर्ता कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र का संयोग जिस भी दिन या वार के साथ होता है उसे उस वार से कहा जाता है।
यदि यह नक्षत्र रविवार, बुधवार या गुरुवार को आता है, तो इसे अत्यधिक शुभ माना गया है।
इस नक्षत्र के गुरु-पुष्य, शनि-पुष्य और रवि-पुष्य योग सबसे शुभ माने जाते हैं।
चंद्र वर्ष के अनुसार महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ संयोग करता है।
अत: इस मिलन को अत्यंत शुभ कहा गया है। पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अतिविशिष्ट, सर्वगुण संपन्न और भाग्यशाली होते हैं।