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Lalita Jayanti 2024: माघी पूर्णिमा आज, ललिता जयंती पर जानें महत्व, कथा और पूजा विधि

Lalita Jayanti 2024 
 

HIGHLIGHTS

 

• ललिता जयंती हर साल माघ पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। 

• इस दिन देवी ललिता की आराधना से मोक्ष मिलता है। 

• मां ललिता की पूजा से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। 

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Mata Lalita Puja 2024 : श्री आदि पराशक्ती मां राजराजेश्वरी ललिता त्रिपुरा सुंदरी की जयंती हर साल माघ माह के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। उन्हें देवी ललिता के नाम से भी जाना जाता है। इस बार माता ललिता की जयंती शनिवार, 24 फरवरी को मनाई जा रही है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए पूजा स्थल को साफ करके विधिवत पूजन करने के बाद सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए। 

 

महत्व: हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार माता ललिता षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है तथा इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। माघ पूर्णिमा के दिन देवी मां ललिता की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। तथा मां ललिता के पूजन से मनुष्य को जीवित रहते ही सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्ति हो जाती है।

माघ पूर्णिमा के दिन ललिता मां के साथ-साथ श्री गणेश के पूजन का भी विशेष महत्व है। माघी पूर्णिमा के दिन कुबेर तथा रात्रि में चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष दूर होता है। धन-संपत्ति, वैभव तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए इस दिन रात्रि के समय में देवी लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा है, मान्यतानुसार ऐसा करने से घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है। 

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मां ललिता की कथा-Mata Lalita Katha  

 

ललिता जयंती की पौराणिक कथा के अनुसार देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण से प्राप्त होता है। 

 

नैमिषारण्य में एक बार यज्ञ हो रहा था जहां दक्ष प्रजापति के आने पर सभी देवता गण उनका स्वागत करने के लिए उठे। लेकिन भगवान शंकर वहां होने के बावजूद भी नहीं उठे, इसी अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष ने अपने यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नही किया। जिसका पता मां सती को चला और वो बिना भगवान शंकर से अनुमति लिए अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गई। 

 

उस यज्ञ में अपने पिता के द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनकर और खुद को अपमानित होते देखकर उन्होंने उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणों को त्याग दिया। भगवान शिव को इस बात की जानकारी हुई तो वह मां सती के प्रेम में व्याकुल हो गए और उन्होंने मां सती के शव को कंधे में रखकर इधर-उधर उन्मत भाव से घूमना शुरू कर दिया। 

 

भगवान शंकर की इस स्थिति से विश्व की संपूर्ण व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई, ऐसे में विवश होकर अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिसके बाद मां सती के शरीर के अंग कटकर गिर गए और उन अंगों से शक्ति विभिन्न प्रकार की आकृतियों से उन स्थानों पर विराजमान हुई और वह शक्तिपीठ स्थल बन गए। महादेव भी उन स्थानों पर भैरव के विभिन्न रूपों में स्थित है। 

 

नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा था। नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है। जहां लिंग स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यही मां ललिता देवी का मंदिर भी है। जहां दरवाजे पर ही पंचप्रयाग तीर्थ विद्यमान है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। 

 

अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है, जब ब्रह्मा जी द्वारा छोड़े गए चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं, और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है। तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं। प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। और सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है। 

 

पूजा विधि-Mata Lalita Puja Vidhi 

 

1. माघ पूर्णिमा मां ललिता की पूजा करना चाहते हैं तो सूर्यास्त से पहले उठें और सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।

2. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वंय उतर दिशा की और बैठ जाएं फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। 

3. चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपको तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। 

4. इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें। 

5. यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें। 

6. इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें। 

7. कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें। 

8. इसके बाद मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं।

माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें। 

9. पूजा के बाद प्रसाद का नौ वर्ष से छोटी कन्याओं के बीच में वितरण कर दें। 

10. यदि आपको नौ वर्ष से छोटी कन्याएं न मिले तो आप यह प्रसाद गाय को खिला दें। 

मंत्र- ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।’ का जाप करें।

 

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