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Sarvapitri amavasya : पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए या नहीं?

shradh 2023 : श्राद्ध पक्ष में पंचबलि भोग के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। कुछ लोग बटुकों को भोजन कराते हैं। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आजकल उठने लगा है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से क्या होगा? इससे बेहतर है कि हम किसी गरीब को भोजन करा दें। ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए या नहीं?

 

ब्राह्मणों के प्रमुख 8 प्रकार बताए गए हैं। मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। इसमें से जो मात्र है वहीं जन्म से ब्राह्मण कहे गए हैं यानी जो न तो वेदपाठी है, न साधक है, न अन्य है। मात्र को छोड़कर सभी निर्व्यसनी ब्राह्मण हैं, उन्हें भोजन कराने का पुण्य लगता है। मात्र का भरोसा नहीं कि वह ब्राह्मण है या नहीं।

 

मात्र कौन : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो अपने कर्मों और व्यवहार के कारण यह भी नहीं हैं।

 

क्यों कराना चाहिए ब्राह्मण भोज :

जैसे पंचबलि कर्म में गाय, कुत्ते, कौवे, चींटी और अतिथि या देव को भोजन कराते हैं तो यह नहीं सोचते हैं कि उन्हें क्यों भोजन दे रहे हैं।

उसी प्रकार योग्य ब्राह्मण को भी उपरोक्त पंचबलि कर्म में ही गिना जाना चाहिए।

भांजा और जमाई को भी भोजन कराते वक्त नहीं सोचा जाता तो फिर ब्राह्मण को भोजन कराते वक्त क्यों सोचते हो?

ब्राह्मण भोज का क्या है विज्ञान? 

हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी में विधिवत डाला हुआ अन्न का बीज सौगुणा बढ़ता है और जल के अनुपात से खाई हुई औषधि सहस्रगुणी फलवती होती है।

इसी प्रकार अग्नि में डाली गई वस्तु लक्षगुणा तथा वायुकणों में परिव्याप्त अनन्तगुणी हो जाती है। 

यानी हवन का अन्य परिवर्तित होकर देव और पितरों को तृप्त करता है।

पुराण कहते हैं कि ब्राह्मण भी अग्नि स्थानीय है, अर्थात विराट के जिस मुख से अग्नि देव उत्पन्न हुआ है उसी मुख से ब्राह्मण की उत्पत्ति लिखी है।

रेडियो यन्त्र के सान्निध्य में समुच्चरित एक शब्द विद्युत शक्ति के प्रभाव से ब्रह्माण्ड भर में परिव्याप्त हो जाता है। 

इसी प्रकार वैदिक विज्ञान में भी लोकान्तर में बसने वाले देव- पितर आदि प्राणियों तक पृथ्वी लोक से द्रव्य पहुंचाने के लिए अग्निदेव का माध्यम नियत किया गया है जिस का प्रक्रियात्मक स्वरूप, अग्नि में हव्य और कव्य को विधिवत होमना है।

शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होकर तृप्त होते हैं। 

शास्त्र के अनुसार, ब्राह्मण को भोजन कराने से पितरों को भोजन आसानी से पहुंच जाता है।

शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध वाले दिन में पितृ स्वयं ब्राह्मण के रूप में उपस्थित होकर भोजन ग्रहण करते हैं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं। 

कैसे कराएं ब्राह्मणों को भोजन? 

श्राद्ध तिथि पर भोजन के लिए, ब्राह्मणों को पहले से आमंत्रित करें।

दक्षिण दिशा में बैंठाएं, क्योंकि दक्षिण में पितरों का वास होता है। 

हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर संकल्प कराएं।

कुत्ते, गाय, कौए, चींटी और देवता को भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

भोजन दोनों हाथों से परोसें, एक हाथ से परोसा भोजन, राक्षस छीन लेते हैं।

बिना ब्राह्मण भोज के, पितृ भोजन नहीं करते और शाप देकर लौट जाते हैं।

ब्राह्मणों को तिलक लगाकर कपड़े, अनाज और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।

भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को द्वार तक छोड़ें।

ब्राह्मणों के साथ पितरों की भी विदाई होती हैं।

ब्राह्मण भोजन के बाद, स्वयं और रिश्तेदारों को भोजन कराएं। 

श्राद्ध में कोई भिक्षा मांगे, तो आदर से उसे भोजन कराएं।

बहन, दामाद और भानजे को भोजन कराए बिना, पितर भोजन नहीं करते।

कुत्ते और कौए का भोजन, कुत्ते और कौए को ही खिलाएं। 

देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं।